Home / Politics / भारतीय राजनीति में मुफ्त की रेवड़ियाँ और उनका प्रभाव

भारतीय राजनीति में मुफ्त की रेवड़ियाँ और उनका प्रभाव

भारतीय राजनीति में चुनावी मौसम आते ही वादों की झड़ी लग जाती हैमुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त लैपटॉप, महिलाओं को मासिक भत्ता, किसानों को मुफ्त फसल बीमा, और भी बहुत कुछ। इन सबको आम बोलचाल में कहा जाता हैफ्रीबीजया मुफ्त की रेवड़ियाँ। यह शब्द अब सिर्फ मज़ाक नहीं, बल्कि एक गहरी राजनीतिक और आर्थिक बहस का विषय बन चुका है।

फ्रीबी कल्चर की शुरुआत

मुफ्त योजनाएं भारतीय राजनीति में नई नहीं हैं 1970 और 1980 के दशक में कई राज्य सरकारें (जैसे तमिलनाडु) ने मुफ्त रंगीन टीवी, फैन, चावल जैसी योजनाएं चलाईं। धीरेधीरे यह चलन पूरे देश में फैल गया और आज लगभग हर राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में ऐसे वादे करता है।

राजनेताओं की रणनीति

राजनीतिक दल इन योजनाओं कोजनकल्याणऔरसमानता की दिशा में कदमबताते हैं। लेकिन आलोचक इसे वोट खरीदने की चाल मानते हैं।

  • चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त योजनाएं घोषित करना आम बात बन गई है।
  • अक्सर यह योजनाएं वित्तीय रूप से अस्थिर होती हैं, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए इन्हें लागू किया जाता है।

जनता का नजरिया

  • गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लिए ये योजनाएं सीधी राहत होती हैं।
  • लेकिन इससे एक मानसिकता भी बनती जा रही हैकि सरकार ही सब देगी और नागरिक की कोई जिम्मेदारी नहीं है।

आर्थिक प्रभाव

  1. राजकोषीय घाटा बढ़ता हैराज्य सरकारें भारी कर्ज में डूबती जा रही हैं।
  2. लंबी अवधि में नुकसानबुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेश कम हो जाता है।
  3. सरकारी योजनाओं की गुणवत्ता घटती हैक्योंकि मात्रा पर जोर होता है, गुणवत्ता पीछे छूट जाती है।

सुप्रीम कोर्ट की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में फ्रीबी कल्चर पर चिंता जताते हुए कहा था किचुनाव के समय मुफ्त योजनाओं का वादा लोकतंत्र को कमजोर करता है इस पर बहस भी चली कि क्या चुनाव आयोग को ऐसी योजनाओं पर रोक लगानी चाहिए?

विकल्प: सशक्तिकरण बनाम उपहार

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकारें यदि मुफ्त उपहार देने की बजाय:

  • कौशल विकास करें,
  • रोजगार के अवसर बढ़ाएं,
  • उद्यमशीलता को बढ़ावा दें,

तो यह देश और जनता दोनों के लिए ज्यादा स्थायी और लाभदायक होगा।

कुछ सकारात्मक पहलू

  • कुछ मुफ्त योजनाएं जैसे मिडडे मील, जन औषधि योजना, या प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने समाज में अच्छा बदलाव भी लाया है।

ज़रूरतमंदों को सहायता देना गलत नहीं है, बशर्ते वह लक्ष्य आधारित और संतुलित हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *