सन् 1974 में बिहार से शुरू हुआ जेपी आंदोलन भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ था। इस आंदोलन का नेतृत्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीवादी विचारधारा के प्रणेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने किया। उन्होंने युवाओं और छात्रों को संगठित करके “सम्पूर्ण क्रांति” का नारा दिया — एक ऐसी क्रांति जो न केवल सरकार बदलने की मांग करती थी, बल्कि पूरे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचे को बदलने की बात करती थी।
जेपी आंदोलन की शुरुआत बिहार में सरकार की विफलताओं, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्रों के विरोध से हुई। यह आंदोलन धीरे–धीरे पूरे देश में फैल गया, विशेष रूप से उत्तर भारत में इसकी गूंज सुनाई दी। इसमें लोकनायक जेपी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे राजनीति में सक्रिय भागीदारी करें और व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में जुटें।
जेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की और लोकतंत्र को बचाने की अपील की। उन्होंने कहा, “सरकार बदलो नहीं, समाज बदलो।“ यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसात्मक था, लेकिन इसका प्रभाव इतना व्यापक था कि इंदिरा गांधी सरकार को डर सताने लगा।
1975 में जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनावी अनियमितताओं के चलते अयोग्य घोषित किया, तो जेपी आंदोलन को और बल मिला। सरकार ने प्रतिक्रिया स्वरूप आपातकाल (Emergency) घोषित कर दिया और जेपी समेत हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया।
हालांकि आपातकाल के दौरान आंदोलन को दबा दिया गया, लेकिन जेपी की विचारधारा और नेतृत्व ने देश की राजनीति को बदल दिया। 1977 में जब चुनाव हुए, तो जनता पार्टी ने कांग्रेस को हराकर पहली बार देश में गैर–कांग्रेसी सरकार बनाई।
जेपी आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि इसने भारतीय जनता में यह विश्वास जगाया कि वे परिवर्तन ला सकते हैं। यह आंदोलन भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की शक्ति का प्रतीक बन गया।
जेपी आज भी युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं के लिए प्रेरणा हैं। उनका नारा “सम्पूर्ण क्रांति“ आज भी भारत की चेतना में गूंजता है।