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बाबा रामदेव का काले धन के खिलाफ आंदोलन

भारत में काले धन की समस्या एक लंबे समय से चिंता का विषय रही है। विदेशी बैंकों में जमा काले धन की चर्चा हर आम और खास भारतीय के मन में सवाल खड़े करती रही हैकि आखिर इस पैसे का क्या होगा? इसी मुद्दे को राष्ट्रीय मंच पर लाने का काम किया योगगुरु बाबा रामदेव ने।

2010-2011 के समय जब अन्ना हज़ारे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे, उसी दौरान बाबा रामदेव ने भी काले धन की वापसी को लेकर एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। उनका दावा था कि विदेशों में भारतीयों का लगभग 400 लाख करोड़ रुपये का काला धन जमा है और यदि ये पैसा वापस जाए, तो भारत को तो टैक्स लेना पड़ेगा, ही किसी विदेशी सहायता की आवश्यकता होगी।

बाबा रामदेव ने अपने आंदोलन की शुरुआत दिल्ली के रामलीला मैदान से की। हजारों की संख्या में लोग वहाँ एकत्र हुए। आंदोलन का स्वरूप अनशन और प्रदर्शन का था। बाबा ने सरकार से साफ तौर पर मांग की कि विदेशी बैंकों में जमा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए और उसकी वसूली के लिए विशेष कानून बनाए जाएं।

इस आंदोलन को जनता से भारी समर्थन मिला, लेकिन 4 जून 2011 की रात को दिल्ली पुलिस ने रामलीला मैदान पर धरना दे रहे लोगों को जबरन हटाया। पुलिस की इस कार्रवाई में हिंसा भी हुई और बाबा रामदेव को महिलाओं के कपड़े पहनकर वहाँ से भागना पड़ायह घटना मीडिया की सुर्खियों में रही और सरकार की आलोचना हुई।

हालांकि इस घटना ने आंदोलन को थोड़ा धीमा किया, लेकिन बाबा रामदेव ने हार नहीं मानी। वे बारबार मंचों से, टीवी चैनलों से और रैलियों के माध्यम से काले धन की वापसी को लेकर आवाज उठाते रहे।

बाबा रामदेव का यह आंदोलन राजनीतिक बदलाव में भी एक भूमिका निभा गया। 2014 के आम चुनाव में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का समर्थन किया। उन्होंने मंचों से लोगों से आग्रह किया कि वे ऐसे नेतृत्व को चुनें जो काले धन को वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध हो।

बाबा रामदेव का आंदोलन, भले ही अपने लक्ष्य तक पूरी तरह नहीं पहुंचा, लेकिन इसने देशभर में एक चेतना जरूर पैदा की। आम जनता अब काले धन जैसे जटिल आर्थिक विषयों पर भी चर्चा करने लगी। सरकार पर लगातार दबाव बना रहा कि वह विदेशी बैंकों से जानकारी ले और दोषियों पर कार्यवाही करे।

निष्कर्षतः, बाबा रामदेव का यह आंदोलन आर्थिक राष्ट्रवाद की एक लहर थी जिसने भ्रष्टाचार और काले धन जैसे विषयों को राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का हिस्सा बना दिया।

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