राम मंदिर आंदोलन भारत के आधुनिक इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसने राजनीति, समाज और धार्मिक चेतना को गहराई से प्रभावित किया। यह आंदोलन केवल एक मंदिर निर्माण की माँग नहीं था, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था, पहचान और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी बन गया।
पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित बाबरी ढांचा (जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था) को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। हिंदू पक्ष का मानना है कि यह मस्जिद भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर बनाई गई थी, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे एक धार्मिक स्थल मानता रहा।
माना जाता है कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण किया, जबकि उस स्थान पर पहले एक राम मंदिर था। इस दावे को ऐतिहासिक और पुरातात्विक आधार पर लंबे समय तक चुनौती मिलती रही।
आंदोलन की शुरुआत
1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (VHP) और संघ परिवार के अन्य संगठनों ने राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन तेज करना शुरू किया। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस मुद्दे को अपनी राजनीति का केंद्रीय विषय बना लिया।
1989 में भाजपा ने इस मुद्दे को चुनावी मंच पर उठाया और 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा की शुरुआत की, जो समग्र भारत में धार्मिक जोश और समर्थन लाने में सफल रही।
6 दिसंबर 1992: एक ऐतिहासिक मोड़
इस आंदोलन की चरम परिणति 6 दिसंबर 1992 को हुई, जब हजारों कारसेवकों ने अयोध्या में मौजूद बाबरी ढांचे को गिरा दिया। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। कई स्थानों पर दंगे, राजनीतिक संकट, और साम्प्रदायिक तनाव देखने को मिला।
इसके बाद की प्रक्रिया
बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद, मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में गया। लिब्राहन आयोग की स्थापना हुई और इस विषय पर वर्षों तक मुकदमा चलता रहा।
ऐतिहासिक निर्णय और मंदिर निर्माण
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने विवादित भूमि को राम जन्मभूमि घोषित करते हुए राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया। मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही वैकल्पिक 5 एकड़ ज़मीन देने का निर्णय हुआ।
इसके बाद 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ और अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण तेजी से चल रहा है।
निष्कर्ष
राम मंदिर आंदोलन भारत के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक इतिहास का अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। यह आंदोलन जहां करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है, वहीं यह भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक प्रक्रिया की सहिष्णुता और विवेकशीलता का भी परिचायक है।